Friday 9 May 2014

An excerpt from a yet to be titled Hindi novel about turn of the century music of the courtesans


बस कल की ही बात लगती है जब हम अम्माजानी और हीराबाई के साथ भरत मिलाप नाटक देखने गईं थीं | मूनलाइट थियेटर नाम था उसका , औ’ बडी मशहूरी हुआ किये थी उसमें खेले जाने वाले नाटकों की , तमाम मुल्क भर से कंपनियाँ अपने अपने कलाकार लेके आती थीं वहाँ नाटक दिखाने को | हीरोइन पेशेंस कूपर थी भी बला की खूबसूरत : गोरी चिट्टी , सुनहरे भूरे बाल , नीली नीली गहरी झील जैसी आँखें | अम्माजानी ने बताया था कि तीन बला की हसीन ऐंग्लोइंडियन बहनें हुआ किये थीं कलकत्ते की , उनमें से ही एक थी पेशेंस मेमसाब | उनकी एक रिश्तेदार अमीलिया कूपर जमिला बाई के सरपरस्त आशिक चरना इस्टेट के महाराजा जू की अंग्रेज़ी की ट्यूटर थी | और दोनो ने हमारी अम्माजानी को भी नाटक का चस्का लगा दिया | शहर में कोई नाटक होता मजाल थी कि तीनों पहला शो न देखें ? लिहाज़ा इस नाटक के टिकट भी मँगाये गये | इसबार ये तीनों सहेलियाँ हरचंद ये नाटक देखने को आना चाहते थीं के इलाके की एक और मशहूर बाई , बाराबंकी की शरीफा जान की बेटी हुस्न बानो पहली पहली बार इसमें सीता का छोटा मोटा रोल कर रही थी | बी शरीफा ने कहला भेजा था अम्माजानी और हीराबाई को कि उनके सर की कसम उनकी लौंडिया का काम देखने उनको आना ही होगा इस बार | अब कहो के होनी को कौन टाले ? 

हुआ ये कि उसी शो में महाराजा जू के एक रंगीन तबीयत साले साहिब भी आगे की सीट पे बैठे हुए थे | जनाब बुंदेलखंड साइड के कोई बडे ताल्लुकेदार हुआ करते थे | स्टेज पे कमसिन हुस्ना को देखा तो रीझ गये | बस , महाराजा जू के सिकेटरी के हाथों रुक्का भिजवा डाला कि फौरन से पेश्तर बी शरीफा जो हैं सो  मिल लें |

अब बी शरीफा की जान साँसत में पड गई | उनकी लौंडिया कुल पंद्रै बरस की नादान हुदहुद बछेरी , कैसे यूँ ही भेज दें ? अँय ? और दरबार के सिकेट्टी मुए को सब जाने थे | कमबख्त पल्ले सिरे का दो मुंहा शख्स था , इधर कहता के हुस्नबानो को भेज दो , उधर रानी साहिबा को उकसा कर उस गरीब को मार जूतियों से पिटवा देता | दरअसल बात ये थी के दरबार के सेकेट्टी एक तो साले साहिब के हमप्याला हमनिवाला थे , दूजे खुद रानी साहिबा का काँटा भी इधर उनसे भिड चला था | अपने भाई की तरह ही रानी साहिबा भी बला की झक्की थीं | बल्लभसागर वालों की बेटी थीं वो , एक बार में दो बोतल शराब पी जाती थीं | वहीं की कोई तीखी शराब , अनार की तो कभी अदरक की | फिर देर रात गये तक डफ़ पर गाना सुनती थीं , सोती तब जाके थीं जब मार्फ़िया का फुल्ल डोज़ दिया जाता |  राजा ज़मींदारों की तो बिट्टो तो बातें निराली ही हुआ करै थीं ..खैर ..| चल निकले तो किस्सों का क्या ठिकाना कहां से कहाँ ले जायें ? कौन जानता था कि भरतमिलाप नाटक से शुरू हुआ किस्सा सीधे चलता चला जायेगा अम्माजानी और हिज़ हाइनेस महाराजा जू की जुदाई करवा के ही मानेगा और सारे सुर जैसे बेसुरे होके बज उठेंगे |

हुआ यूं के आखिरकार गुस्सा , डर थूक के शरीफ़ा ने हुस्ना को बल्लभगढ वालों के भेज ही दिया | वहाँ पूरे आठ बरस रही वो इसके बाद साले सरकार की मुँहलगी रखैल बन के | सोने से मढ दिया था उसे और उसकी माँ शरीफा बी को सरकार ने | पे पेट की कच्ची निकली हुस्ना | रण्डी की नस्ल ठहरी | एक दिन उगल ही दिया साले सरकार के आगे , कि हुज़ूर जब आपका रुक्का आया था , तो हमारी अम्मा को महाराज जू की शेरकोठी वाली बाई ने हमें आपके पास ना भेजने की सलाह दी थी | बस बल्लभगढ वालों ने समझो के बात गाँठ बाँध ली ,  और आखिरकार अम्माजानी को अपने जीजा हुज़ूर से जुदा करा के पूरा बदला ले लिया |

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